Kya Karein
माना वक़्त हो गया है
दिल ये सख़्त हो गया है
फिर भी तुझको चाहता है
ग़लत है क्या
माना मेरे हक़ मैं तू नही
इसमे कोई शक भी तो नही
फिर भी तुझको माँगता है
ग़लत है क्या
तुझको दूर दूर दूर से देखे हस्ता रहे
तेरे पास तेरी और जाने से डरता रहे
तेरी तस्वीरों में तुझको समेटे हुए
तन्हा रातों में आँखें जो भीगे
फिर क्या करें
फिर क्या करें
किस से कहे हम क्या करें
माना तेरी मुस्कुराहटें जैसे
दिन में कोई चाँद हो खिला
काश तेरी ज़ुलफ की घटा
आज हमको फिर से दे मिला
तुज़से दूर दूर दूर दूर कैसे गुज़रा करे
इश्क़ तुझसे जो किया किसी से कैसे
दुबारा करें
तेरी सारी सारी यादों के पीछे
छुपते रहे
तन्हा रातों में आँखें जो भीगे
फिर क्या करें
फिर क्या करें
किस से कहे हम क्या करें