Akaash Vani [Mashup]
वायु की भाँति ओझल सा हूँ आँखों से
मगर एहसास है मेरा
सोचो की हूँ ही नहीं मैं, और अगर हूँ भी तो
धूतकार्टे रहो और दफ़ना दो मुझे अंतरिक्ष में कहीं
पर तुम जब तक साँस लेते रहोगे मैं वहीं मिलूँगा
मैं मरता रहूँगा
मैं जीटा भी रहूँगा
मैं तैरता रहूँगा कहीं ख़ालीपन में
जो खामोशी की चीखों से भरा होगा
हर चीख एहसास कराएगी
की लौटना है यूयेसेस कायनात में
जो कायनात मैं खुद हूँ
ना जाने मैं, या फिर ये कायनात है भी या नहीं
बस चलते जा रहा हूँ
और अब भस्म हो जाना तय है
पर मेरी तकमील की चाह तेरी क्षय है और
बस मेरी जाई है, बस मेरी जाई है
मुझे तो तुम मार चुके हो
मगर मैं तुम्हे कहीं अमर कर आया हूँ
और मैं बोलू या नहीं
मगर यह शब्द जो अक्ष है
मेरे शीशे जैसे चेहरे पर चमकते हुए
बस कुछ कहते रहेंगे
बस कुछ कहते रहेंगे
बस कुछ कहते रहेंगे