Kal Ki Raat Giri Thhi Shabnam

GULZAR

कल की रात गिरी थी शबनम
हौले-हौले कलियों के बन्द होंठों पर
बरसी थी शबनम

फूलों के रुख़सारों से रुख़सार मिलाकर
नीली रात की चुनरी के साये में शबनम
परियों के अफ़सानों के पर खोल रही थी

दिल की मद्धम-मद्धम हलचल में
दो रूहें तैर रही थीं
जैसे अपने नाज़ुक पंखों पर
आकाश को तोल रही हों

कल की रात बड़ी उजली थी
कल की उजले थे सपने
कल की रात तेरे संग गुज़री

Curiosidades sobre la música Kal Ki Raat Giri Thhi Shabnam del Gulzar

¿Quién compuso la canción “Kal Ki Raat Giri Thhi Shabnam” de Gulzar?
La canción “Kal Ki Raat Giri Thhi Shabnam” de Gulzar fue compuesta por GULZAR.

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