Kabhi Kabhi Jab Main Baith Jaata Hoon

GULZAR

कभी-कभी, जब मैं बैठ जाता हूँ
अपनी नज़्मों के सामने निस्फ़ दायरे में
मिज़ाज पूछूँ
कि एक शायर के साथ कटती है किस तरह से

वो घूर के देखती हैं मुझ को
सवाल करती हैं ! उनसे मैं हूँ
या मुझसे हैं वो
वो सारी नज़्में
कि मैं समझता हूँ
वो मेरे 'जीन' से हैं लेकिन
वो यूँ समझती हैं उनसे है मेरा नाक-नक्शा
ये शक्ल उनसे मिली है मुझको

मिज़ाज पूछूँ मैं क्या है
एक नज़्म सामने आती है
छू के पेशानी पूछती है
बताओ अगर इन्तिशार है कोई सोच में तो
मैं पास बैठूँ

मदद करूँ और बीन दूँ उलझने तुम्हारी
"उदास लगते हो," एक कहती है पास आ कर
"जो कह नहीं सकते तुम किसी को
तो मेरे कानों में डाल दो राज़
अपनी सरगोशियों के, लेकिन
गर इक सुनेगा, तो सब सुनेंगे

भड़क के कहती है एक नाराज़ नज़्म मुझसे
"मैं कब तक अपने गले में लूँगी
तुम्हारी आवाज़ कि खराशें
एक और छोटी सी नज़्म कहती है
"पहले भी कह चुकी हूँ शायर
चढ़ान चढ़ते अगर तेरी साँस फूल जाये
तो मेरे कंधों पे रख दे
कुछ बोझ मैं उठा लूँ

वो चुप-सी इक नज़्म पीछे बैठी जो टकटकी बाँधे
देखती रहती है मुझे बस
न जाने क्या है के उसकी आँखों का रंग
तुम पर चला गया है

अलग-अलग हैं मिज़ाज सब के
मगर कहीं न कहीं वो सारे मिज़ाज मुझमे बसे हुए हैं
मैं उनसे हूँ या
हा मुझे ये एहसास हो रहा है
जब उनको तखलीक़ दे रहा था
वो मुझे तखलीक़ दे रही थीं

Curiosidades sobre la música Kabhi Kabhi Jab Main Baith Jaata Hoon del Gulzar

¿Quién compuso la canción “Kabhi Kabhi Jab Main Baith Jaata Hoon” de Gulzar?
La canción “Kabhi Kabhi Jab Main Baith Jaata Hoon” de Gulzar fue compuesta por GULZAR.

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