Ek Lams Halka Subuk
GULZAR
एक लम्स हल्का, सुबुक
और फिर लम्स-ए-तवील
एक लम्स हल्का सुबुक
और फिर लम्स-ए-तवील
दूर उफ़क़ के नीले पानी में उतर जाते हैं तारों के हुजूम
और थम जाते हैं सय्यारों की गर्दिश के क़दम
ख़त्म हो जाता है जैसे वक़्त का लंबा सफ़र
तैरती रहती है एक ग़ुंचे के होंठों पे कहीं
एक बस निथरी हुई शबनम की बूँद
तेरे होंठों का बस एक लम्स-ए-तवील
तेरी बाँहों की बस एक संदली गिरह