Ik Baar Hi Jee Bhar Ke

MURTUZA BARLAS, TALAT AZIZ

इक बार ही जी भर के
इक बार ही जी भर के
सज़ा क्यूँ नहीं देते
इक बार ही जी भर के
सज़ा क्यूँ नहीं देते
गर हरफ़ ए ग़लत हूँ
तो मिटा क्यूँ नहीं देते
इक बार ही जी भर के
सज़ा क्यूँ नहीं देते
इक बार ही जी भर के

अब शिद्दत ए घाम से
मेरा दूं गुटने लगा हैं
अब शिद्दत ए घाम से
मेरा दूं गुटने लगा हैं
तू मृेशमी ज़ुल्फो की
तू मृेशमी ज़ुल्फो की
हवा क्यूँ नहीं देते
तू मृेशमी ज़ुल्फो की
हवा क्यूँ नहीं देते
गर हरफ़ ए ग़लत हूँ
तो मिटा क्यूँ नहीं देते
इक बार ही जी भर के

मोटी हो तो फिर सोज़ने
मीस्गा से पिरो लो
मोटी हो तो फिर सोज़ने
मीस्गा से पिरो लो
आँसू हो तो दामन पे
आँसू हो तो दामन पे
गिरा क्यूँ नहीं देते
आँसू हो तो दामन पे
गिरा क्यूँ नहीं देते
गर हरफ़ ए ग़लत हूँ तो
मिटा क्यूँ नहीं देते
इक बार ही जी भर के

साया हूँ तो फिर साथ
ना रखने का सबब क्या
साया हूँ तो फिर साथ
ना रखने का सबब क्या
पत्थर हूँ तो रास्ते से
पत्थर हूँ तो रास्ते से
हटा क्यूँ नहीं देते
पत्थर हूँ तो रास्ते से
हटा क्यूँ नहीं देते
गर हरफ़ ए ग़लत हूँ तो
मिटा क्यूँ नहीं देते
इक बार ही जी भर के
सज़ा क्यूँ नहीं देते
इक बार ही जी भर के
इक बार ही जी भर के
इक बार ही जी भर के

Curiosidades sobre la música Ik Baar Hi Jee Bhar Ke del Talat Aziz

¿Quién compuso la canción “Ik Baar Hi Jee Bhar Ke” de Talat Aziz?
La canción “Ik Baar Hi Jee Bhar Ke” de Talat Aziz fue compuesta por MURTUZA BARLAS, TALAT AZIZ.

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