Ek Aisi Ghazal
एक ऐसी ग़ज़ल है जिसको
अल्फ़ाज़ दे ना पाया
एक ऐसी ग़ज़ल है जिसको
अल्फ़ाज़ दे ना पाया
अपनी ही शायरी को
आवाज़ दे ना पाया
एक ऐसी ग़ज़ल है जिसको
अल्फ़ाज़ दे ना पाया
चाहत के आस्मा को
चाँद की ज़रूरत
चाहत के आस्मा को
चाँद की ज़रूरत
महबूब की तरह जो मुझको लगे खूबसूरत
अब तक तो उसे मैं नया
एक अंदाज दे ना पाया
अपनी ही शायरी को
आवाज़ दे ना पाया
एक ऐसी ग़ज़ल है जिसको
अल्फ़ाज़ दे ना पाया
महफ़िल तो ढूंडती है नगमो की रवानी
महफ़िल तो ढूंडती है नगमो की रवानी
क्यो याद दुनिया करेगी भूले से मेरी कहानी
दिल की तमन्नाओ को कोई साज़ दे ना पाया
अपनी ही शायरी को
आवाज़ दे ना पाया
एक ऐसी ग़ज़ल है जिसको
अल्फ़ाज़ दे ना पाया
अपनी ही शायरी को
आवाज़ दे ना पाया