Bachpan

AYUSHMANN KHURRANA

हम्म थकी है नहीं ये आँखें
सीने में बची हैं सांसें
रोकेगी कितना ये ज़िन्दगी
दबी हुई थी कोने
छिपी हुई थी सपने में
सिमटी हुए थे अब नहीं, अब नहीं
सजाऊं बचपन ऐसा
ऐसा
कांटे भी हो तो क्या
बनाऊं मैं कल ऐसा
जले सारी दुनिया ये रे
हो हो

कमी थी जो मुझ में कब से
मिला ना जो मुझको रब से
लकीरों में बंध के अब नहीं, अब नहीं
अब नहीं
छींटे जो पड़े हैं कल के
मिटेंगे उसी पे चल के
रोकेगी ये कितना ज़िन्दगी
ये ज़िन्दगी
सीखेंगे गिर गिर के
तारों से भी तो क्या
बनाऊं मैं कल ऐसा
जले सारी दुनिया ये रे

दबी थी छिपी थी
रोये थे खोये थे रातों में
झुके ना रुके ना
ढूँढें ना मंजिल को हाथों में
मंजिल को हाथों में
मंजिल को हाथों में
मंजिल को हाथों में.

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