Sab Dhan Maati

Manoj Muntashir

मध् माया में लूटा रे कबीरा
हां मध् माया में लूटा रे कबीरा
कांच को समझा कांचन हीरा
झर गए सपने पाती पाती
आँख खुले तो सब धन माटि
आँख खुले तो सब धन माटि

हो करम झकोरे जब जब आवे हो
करम झकोंरे जब जब आवे
चाँद सितारे सब बुझ जावे
शीश महल में दिया ना बाती
आँख खुले तो सब धन माटि
आँख खुले तो सब धन माटि

खुल गयी जेहि दिन करम गठरिवा
हो खुल गयी जेहि दिन करम गठरिवा
धू धू बर गयी सपन नगरिया
कोयला होइ गयी सारी चांदी
आँख खुले तो सब धन माटि
आँख खुले तो सब धन माटि

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