Nasamjhi

Utsavi Vipul Jha

क्यूँ क्यूँ क्यूँ क्यूँ
लगता खाली दिल देखो भरा पड़ा है यादों से
यह कैसी नासमझी है
कैसी नासमझी है
कैसी नासमझी है

आँखें नम सी है
दिल तो सुखा है
यह कैसी नासमझी, ना समझी नासँझ लेकिन मैं नहीं
नासमझी, ना समझी नासमझ यूँ तो मैं नहीं
क्यूँ क्यूँ क्यूँ क्यूँ
लगता खाली दिल देखो भरा पड़ा है यादों से
यह कैसी नासमझी है
कैसी नासमझी है
कैसी नासमझी है

तारे लाने के वादों में रात कटती गयी
पास आने की आस में दूरी बढ़ती गयी
धुंधले देखे नज़ारे आँखें मीचा ना करी
नासमझी यह कैसी करदी नासँझ मैं नही
बातें रुकती तो, मिज़ाज कहता है
यह कैसी नासमझी, ना समझी नासमझ लेकिन मैं नहीं
नासमझी, ना समझी नासमझ यूँ तो मैं नहीं
क्यूँ क्यूँ क्यूँ क्यूँ
लगता खाली दिल देखो भरा पड़ा है यादों से
यह कैसी नासमझी है
कैसी नासमझी है
कैसी नासमझी

तारे वारे सारे देखे
बेवजह बातें करली
राहें नापी सारी फिर क्यूँ
इतना खाली कितना खाली लगता है दिल
लगता है के मेरे जहाँ में
यूँ तो बाकी हो, देखो बाकी हो, ज़रा तुम

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