Kabhi Kahbhi

Shakeel Sohail, Shiraz Uppal

कभी कभी अंधेरा अच्छा लगे
ख्वाब कोई अधूरा सच्चा लगे
कभी रास्ता नहीं कटे वो मंज़िल लगे
कभी आसान सी धड़कन भी मुस्किल लगे
कभी कभी लगे जिंदगी दिलग्गी
कभी कभी लगे दिलग्गी जिंदगी
कभी कभी लगे जिंदगी दिलग्गी
कभी कभी लगे दिलग्गी जिंदगी

अजनबी सा रास्ता है
अजनबी सा रास्ता है
आसमान ताने हुए
कुछ कदम रूठे हुए हैं
कुछ कदम माने हुए है
कभी तुम पर लगा के
उड़े तो नहीं फिर मेरे
कभी सालो सी एक रात
आँखो मैं आ परे
कभी कभी लगे जिंदगी दिलग्गी
कभी कभी लगे दिलग्गी जिंदगी
कभी कभी लगे जिंदगी दिलग्गी
कभी कभी लगे दिलग्गी जिंदगी

या सफ़र मैं रह गुज़र मैं
या सफ़र मैं रह गुज़र मैं
हुंसफर मिलते तो हैं
रास्ते उम्मीद के फिर से
दिए जलाते तो हैं
कभी बढ़न तो हैं
बेनाम रिस्टो की जंजीर का
पर कभी साथ छलके भी
जैसे ना आसना
कभी कभी लगे जिंदगी दिलग्गी
कभी कभी लगे दिलग्गी जिंदगी
कभी कभी लगे जिंदगी दिलग्गी
कभी कभी लगे दिलग्गी जिंदगी
कभी कभी लगे जिंदगी दिलग्गी
कभी कभी लगे दिलग्गी जिंदगी

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