Woh Galiyaan

Kausar Munir, Amit Trivedi

वो गलियों, छोड़ आए हम जो
फिर क्यूँ बुलाएँ हमको? क्यूँ आज़माए, ऐ ख़ुदा
वो गलियों, भूल आए हम जो क्यूँ याद आएँ हमको
क्यूँ नींद उड़ाए, ऐ खुदा
है जाना हमें पार, पार, पार, कैसे चलें
कि गिर के यूँ बार, बार, बार कैसे चलें
कि मान के हार, हार, हार कैसे चलें
कैसे थमे हम, ऐ ख़ुदा

ये टूटे-फूटे सपने, ये झूटे-मूटे सपने
हैं नींदों में खंजर ये रूठे हुए सपने सपने अपने

जाते-जाते खो जाएगी डगर नैनों से भी
आते-आते आ जाएगा सबर पैरों को भी
होते-होते हो जाएगी ख़बर गैरों को भी
कि हमने सपनों को कर दिया अलविदा
वो गलियों, फुक आए हम जो
फिर क्यूँ बुझाएँ हमको? क्यूँ दिल जलाए, ऐ ख़ुदा
वो गलियाँ, चौंक आए हम जो
फिर चोट धाएँ हमको
क्यूँ दिल दुखाए, ऐ ख़ुदा
है जाना हमें पार, पार, पार, कैसे चलें
कि गिर के यूँ बार, बार, बार कैसे चलें
कि मान के हार, हार, हार कैसे चलें
कैसे थमे हम, ऐ ख़ुदा

ये टूटे-फूटे सपने, ये झूटे-मूटे सपने (बार, बार)
हैं नींदों में खंजर ये रूठे हुए सपने (बार, बार)
ये टूटे-फूटे सपने, ये झूटे-मूटे सपने (हार हार)
हैं नींदों में खंजर ये रूठे हुए सपने सपने अपने

वो गलियाँ
वो गलियाँ

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