Ek Hi Baat Zamane Ki Kitabon Mein Nahi

SUDARSHAN FAAKIR, TAJ AHMED KHAN

हम्म एक ही बात ज़माने की किताबों में नहीं
एक ही बात ज़माने की किताबों में नहीं
जो ग़म-ए-दोस्त मे नशा हैं शराबों में नहीं
एक ही बात

हुस्न की भीख ना माँगेंगे ना जलवों की कभी
हुस्न की भीख ना माँगेंगे ना जलवों की कभी
हम फकीरों से मिलो खुल के हिजाबों मे नहीं
हम फकीरों से मिलो खुल के हिजाबों मे नहीं
एक ही बात

हर जगह फिरते हैं आवारा ख़यालों की तरह
हर जगह फिरते हैं आवारा ख़यालों की तरह
ये अलग बात हैं हम आपके ज़्वाबों में नहीं
ये अलग बात हैं हम आपके ख़्वाबों में नहीं
एक ही बात

ना डुबो साग़र-ओ-मीना में ये ग़म ऐ फ़ाक़िर
ना डुबो साग़र-ओ-मीना मे ये ग़म ऐ फ़ाक़िर
के मक़ाम इनका दिलों में हैं शराबों में नहीं
के मक़ाम इनका दिलों में हैं शराब में नहीं
एक ही बात ज़माने की किताबों में नहीं
एक ही बात

Curiosidades sobre la música Ek Hi Baat Zamane Ki Kitabon Mein Nahi del Mohammed Rafi

¿Quién compuso la canción “Ek Hi Baat Zamane Ki Kitabon Mein Nahi” de Mohammed Rafi?
La canción “Ek Hi Baat Zamane Ki Kitabon Mein Nahi” de Mohammed Rafi fue compuesta por SUDARSHAN FAAKIR, TAJ AHMED KHAN.

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