Hawaa Guzar Gayi

GULZAR, BHUPINDER SINGH

हवा गुज़र गयी
पत्ते थे कुच्छ हीले भी नहीं

हवा गुज़र गयी
पत्ते थे कुच्छ हीले भी नहीं
वो मेरे शहर में
आए भी और मिले भी नहीं
हवा गुज़र गयी
पत्ते थे कुच्छ हीले भी नहीं
वो मेरे शहर में
आए भी और मिले भी नहीं
हवा गुज़र गयी
पत्ते थे कुच्छ हीले भी नहीं

चराग़ जलते है
फिर शाम उधड़ने लगती हैं
चराग़ जलते है
फिर शाम उधड़ने लगती हैं
जो इंतजार के लम्हें थे
वो सिले भी नहीं
जो इंतजार के लम्हें थे
वो सिले भी नहीं
वो मेरे शहर में
आए भी और मिले भी नहीं
हवा गुज़र गयी
पत्ते थे कुच्छ हीले भी नहीं

यह कैसा रिश्ता हुआ
इश्क़ में वफ़ा का भला
यह कैसा रिश्ता हुआ
इश्क़ में वफ़ा का भला
तमाम उम्र में
दो चार च्छे गीले भी नहीं
तमाम उम्र में
दो चार च्छे गीले भी नहीं
वो मेरे शहर में
आए भी और मिले भी नहीं
हवा गुज़र गयी
पत्ते थे कुच्छ हीले भी नहीं
वो मेरे शहर में
आए भी और मिले भी नहीं
वो मेरे शहर में
आए भी और मिले भी नहीं
वो मेरे शहर में
आए भी और मिले भी नहीं

Curiosidades sobre la música Hawaa Guzar Gayi del Bhupinder Singh

¿Quién compuso la canción “Hawaa Guzar Gayi” de Bhupinder Singh?
La canción “Hawaa Guzar Gayi” de Bhupinder Singh fue compuesta por GULZAR, BHUPINDER SINGH.

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