Aaj Phir Chaand Ki

GULZAR, BHUPINDER SINGH

आज फिर चाँद की
पेशानी से उठता है धुआँ
आज फिर चाँद की
पेशानी से उठता है धुआँ
आज फिर महकी हुई
रात में जलना होगा
आज फिर चाँद की
पेशानी से उठता है धुआँ
आज फिर महकी हुई
रात में जलना होगा
आज फिर चाँद की
पेशानी से

आज फिर सीने में
सुलझी हुई वज़नी साँसें
आज फिर सीने में
सुलझी हुई वज़नी साँसें
फट के बस टूट ही जाएँगी
बिखर जाएँगी
आज फिर जाग के गुज़रेगी तेरे
ख्वाब में रात
आज फिर चाँद की
पेशानी से उठता है धुआँ
आज फिर महकी हुई
रात में जलना होगा
आज फिर चाँद की
पेशानी से

बदबानो की तरह
फूली हुई है साँसे
बदबानो की तरह
फूली हुई है साँसे
और जूनुन ले के चला
बहेते जज़ीरो की तरफ
फिर किसी दर्द के
साहिल पे उतरना होगा
आज फिर चाँद की
पेशानी से उठता है धुआँ
आज फिर महकी हुई
रात में जलना होगा
आज फिर चाँद की पेशानी से

Curiosidades sobre la música Aaj Phir Chaand Ki del Bhupinder Singh

¿Quién compuso la canción “Aaj Phir Chaand Ki” de Bhupinder Singh?
La canción “Aaj Phir Chaand Ki” de Bhupinder Singh fue compuesta por GULZAR, BHUPINDER SINGH.

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