Khoon Ke Chhape

HARIVANSH RAI BACHCHAN, MURLI MAHOHAR SWARUP

सुबह-सुबह उठकर क्‍या देखता हूँ
कि मेरे द्वार पर
खून-रँगे हाथों से कई छापे लगे हैं
और मेरी पत्‍नी ने स्‍वप्‍न देखा है
कि एक नर-कंकाल आधी रात को
एक हाथ में खून की बाल्‍टी लिए आता है
और दूसरा हाथ उसमें डुबोकर
हमारे द्वार पर एक छापा लगाकर चला जाता है
फिर एक दूसरा आता है
फिर दूसरा, आता है
फिर दूसरा, फिर दूसरा, फिर दूसरा... फिर
यह बेगुनाह खून किनका है
क्‍या उनका
जो सदियों से सताए गए
जगह-जगह से भगाए गए
दुख सहने के इतने आदी हो गए
कि विद्रोह के सारे भाव ही खो गए
और जब मौत के मुँह में जाने का हुक्‍म हुआ
निर्विरोध, चुपचाप चले गए
और उसकी विषैली साँसों में घुटकर
सदा के लिए सो गए
उनके रक्‍त की छाप अगर लगनी थी तो
किसके द्वार पर
यह बेज़बान ख़ून किनका है
क्या उनका जिन्‍होंने आत्‍माहन् शासन के शिकंजे की
पकड़ से, जकड़ से छूटकर
उठने का, उभरने का प्रयत्‍न किया था
और उन्‍हें दबाकर, दलकर, कुचलकर
पीस डाला गया है
उनके रक्‍त की छाप अगर लगनी थी तो
किसके द्वार पर
यह जवान खून किनका है
क्‍या उनका
जो अपने माटी का गीत गाते
अपनी आजादी का नारा लगाते
हाथ उठाते, पाँव बढ़ाते आए थे
पर अब ऐसी चट्टान से टकराकर
अपना सिर फोड़ रहे हैं
जो न टलती है, न हिलती है, न पिघलती है
उनके रक्‍त की छाप अगर लगनी थी तो
किसके द्वार पर
यह मासुम खून किनका है
क्या उनका जो अपने श्रम से धूप में, ताप में
धूलि में, धुएँ में सनकर, काले होकर
अपने सफेद-स्‍वामियों के लिए
साफ़ घर, साफ़ नगर, स्‍वच्‍छ पथ
उठाते रहे, बनाते रहे
पर उनपर पाँव रखने, उनमें पैठने का
मूल्‍य अपने प्राणों से चुकाते रहे
उनके रक्‍त के छाप अगर लगनी थी तो
किसके द्वार पर
यह बेपनाह खून किनका है
क्‍या उनका
जो तवारीख की एक रेख से
अपने ही वतन में एक जलावतन हैं
जो बहुमत के आवेश पर
सनक पर, पागलपन पर
अपराधी, दंड्य और वध्‍य
करार दिए जाते हैं
निर्वास, निर्धन, निर्वसन
निर्मम क़त्‍ल किए जाते हैं
उनके रक्‍त की छाप अगर लगनी थी तो
किसके द्वार पर
यह बेमालूम खून किनका है
क्‍या उन सपनों का
जो एक उगते हुए राष्‍ट्र की
पलको पर झूले थे, पुतलियों में पले थे
पर लोभ ने, स्‍वार्थ ने, महत्‍त्‍वाकांक्षा ने
जिनकी आँखें फोड़ दी हैं
जिनकी गर्दनें मरोड़ दी हैं।उनके रक्‍त की छाप अगर लगनी थी तो
किसके द्वार पर
लेकिल इस अमानवीय अत्‍याचार, अन्‍याय
अनुचित, अकरणीय, अकरुण का
दायित्‍व किसने लिया
जिके भी द्वार पर यह छापे लगे उसने
पानी से घुला दिया
चूने से पुता दिया
किन्‍तु कवि-द्वार पर
छापे ये लगे रहें
जो अनीति, अत्ति की
कथा कहें, व्‍यथा कहें
और शब्‍द-यज्ञ में मनुष्‍य के कलुष दहें
और मेरी पत्‍नी ने स्‍वप्‍न देखा है
कि नर-कंकाल
कवि-कवि के द्वार पर
ऐसे ही छापे लगा रहे हैं
ऐसे ही शब्‍द-ज्‍वाला जगा रहे हैं

Curiosidades sobre la música Khoon Ke Chhape del Amitabh Bachchan

¿Cuándo fue lanzada la canción “Khoon Ke Chhape” por Amitabh Bachchan?
La canción Khoon Ke Chhape fue lanzada en 1979, en el álbum “Bachchan Recites Bachchan”.
¿Quién compuso la canción “Khoon Ke Chhape” de Amitabh Bachchan?
La canción “Khoon Ke Chhape” de Amitabh Bachchan fue compuesta por HARIVANSH RAI BACHCHAN, MURLI MAHOHAR SWARUP.

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