Chanchal Man Panchhi Bankar
चंचल मन पंछी बनकर, जा बैठा है छाँव तुम्हारी
पर नैना मिलने को आतुर, अब तक बैठी रही कुँवारी
अब तो आजा कृष्ण मुरारी, अब तो आजा कृष्ण मुरारी
चंचल मन
आस लगाए आसिन बीता, हुआ वसंत साँसों पर भारी
काली कुसुम जूड़े मेँ गूँथा, कुमकुम से मैंने मांग सँवारी
अब तो आजा कृष्ण मुरारी, अब तो आजा कृष्ण मुरारी
चंचल मन
रच - रच के अंखियन में अंजन, कण - कण में मैं तुम्हें निहारी
हंस -हंस के बोली कजरा मोसे, तूतो प्रीत लगा के हारी
अब तो आजा कृष्ण मुरारी, अब तो आजा कृष्ण मुरारी
चंचल मन
मद्धिम पड़ गए पग मे महावर, चुप - चुप हुई नुपूर धुन प्यारी
सुधियों के संग रास रचाती, मीरा बनी रही बेचारी
अब तो आजा कृष्ण मुरारी, अब तो आजा कृष्ण मुरारी
अब तो आजा कृष्ण मुरारी, अब तो आजा कृष्ण मुरारी