Benaam Sa Dard
Nida Fazli
मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा
मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा
जाते हैं जिधर सब मैं उधर क्यों नहीं जाता
बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म
बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
जो बीत गया है
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता
बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
वो ख्वाब जो बरसों से ना चेहरा ना बदन है
वो ख्वाब जो बरसों से ना चेहरा ना बदन है
वो ख्वाब हवाओं में बिखर क्यों नही जाता
वो ख्वाब वो ख्वाब वो ख्वाब वो ख्वाब
हवाओं में हवाओं में वो ख्वाब
बिखर क्यों नही जाता जाता जाता
वो ख्वाब हवाओं में बिखर क्यों नही जाता
जो बीत गया है
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता
बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता