Kehdo Is Raat Se

Mirza Ghalib, Muhammad Taqi

केहदो इस रात से के रुक जाए
केहदो इस रात से के रुक जाए
दर्द ए दिल मिन्नतों से सोया है
केहदो इस रात से के रुक जाए
दर्द ए दिल मिन्नतों से सोया है
ये वोही दर्द है जिसे लेकर
लैला तडपि थी मजनू रोया है
केहदो इस रात से के रुक जाए
दर्द ए दिल मिन्नतों से सोया है

मैं भी इस दर्द की पुजारन हूँ
ये ना मिलता तो कब की मार जाती
मैं भी इस दर्द की पुजारन हूँ
ये ना मिलता तो कब की मार जाती
इस के इक इक हसीन मोटी को
रात दिन पलकों में पिरोया है
ये वोही दर्द है जिसे लेकर
लैला तदपि थी मजनू रोया है
केहदो इस रात से के रुक जाए
दर्द ए दिल मिन्नतों से सोया है

ये वोही दर्द है जिसे घालिब
जस्ब करते थे अपनी गज़लो में
ये वोही दर्द है जिसे घालिब
जस्ब करते थे अपनी गज़लो में
ये वोही दर्द है जिसे घालिब
जस्ब करते थे अपनी गज़लो में
मीर ने जब से इसको अपनाया
दामने जिस्ट को भिगोया है
ये वोही दर्द है जिसे लेकर
लैला तडपि थी मजनू रोया है
केहदो इस रात से के रुक जाए
दर्द ए दिल मिन्नतों से सोया है
केहदो इस रात से के रुक जाए

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